एक बार किसी बड़े देश के राजा ने सर्वश्रेष्ठ शासक के लिए पुरस्कार समारोह करवाने के सोचा तो उसने सभी पडोसी राज्यों के शासकों को न्योता दिया | पडोसी राज्यों के शासक नियत समय पर राजदरबार में आ पहुंचे |
सभी के आ जाने के बाद राजा ने उन सबको अपनी उपलब्धियों के बारे में बताने को कहा | एक शासक ने कहा उसके राज्य में उसके काल के दौरान उसके राज्य की जो आय है वो दोगुनी हो गयी है | दूसरे ने बताया उसके राज्य काल के दौरान उसके राज्य में स्वर्ण मुद्रयों के भंडार स्थापित हो गये है | किसी ने कहा कि उसने अपने शासनकाल के दौरान युद्ध के लिए काम में आने वाले हथियारों की व्यवस्था कर ली है |
इस तरह सभी राज्य के राजाओं ने अपनी अपनी सफलताएँ गिनायीं | लेकिन अंत में एक राजा ने सकुचाते हुए कहा कि मेरे राज्य में न तो स्वर्ण मुद्रा के कोष में वृद्धि हुई है और न ही ऐसा है कि मेरी आय बढ़ी है और मेने तो अपने राज्य में हथियारों में भी वृद्धि नहीं है क्योंकि मेने अपने राज्य में जनता जो अधिक से अधिक लाभ देने का आदेश दे दिया है इसी वजह से मेरा राजकोष भी कम हो गया है क्योंकि मेने राजकोष का धन अधिक से अधिक पाठशाला खुलवाने और अस्पताल बनवाने में खर्च किया है और मेरे राज्य में वृक्षारोपण पर भी अधिक से अधिक जागरूकता से काम होता है इसलिए मेरा ध्यान राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए गया ही नहीं है |
लेकिन हाँ इतना है कि ये सब करने से मेरे राज्य में युवाओं को रोजगार मिला है और जनता खुश है इसके अलावा मेरी कोई विशेष उपलब्धि नहीं है | राजा ने उसे ही विजेता घोषित करते हुए कहा कि असल में तुम ही सच्चे शासक को क्योंकि प्रजा हित से बढ़कर तो कुछ नही है प्रजा को रोजगार के अवसर देना और उसकी जीविका के साधन उपलब्ध करवाना ही प्रजा धर्मं है और तुम श्रेष्ठ हो |
No comments:
Post a Comment