Friday, April 29, 2016

प्रेरणादायक जीवन मंत्र


1)  अपने विचारो को बताने से पहले थोडा सोच ले :
गलत समय पर गलत बाते बोलना आपकी मुसीबतों को बढ़ा सकता है.
अंततः हम सभी को आत्ममंथन की जरुरत होती ही है. ये एक साधारण उपाय है हम हमारे रवैये को बदलकर ही जिंदगी में बहोत सी मुसीबतों का सामना आसानी से कर सकते है. और प्यार भरे रिश्तो को जिंदगीभर के लिये बनाये रख सकते है.
2)  आलोचनाओ से दूर रहे और दूसरो का मजाक न उडाये :
हमारी अनुभूति और उसके प्रकोप के दो तरह के प्रभाव होते है. यदि आप प्यार, स्नेह, दया, करुणा, कल्याण के रूप में सकारात्मक विचारो को भेजते हो तो इससे आपके संबंध और भी मधुर और मजबूत बनेंगे. इसके विपरीत जो लोग गुस्सा, नफरत, चिंता, आलोचना, गलतिया ढूंडना, नकारात्मक सोचना और बुरे शब्दों का प्रयोग करते है, उनके संबंध ख़त्म होते हुए नज़र आते है. और इसी की चिंता में इंसान के जीवन से प्यार और ख़ुशी हमेशा के लिये चली जाती है. दो इंसानों में संबंध में दोनों में एक-दूजे को समझने की ताकत होनी चाहिये, ना की एक-दूजे में अहंकार और द्वेषभाव होना चाहिये.
3)  क्या आप आसानी से दुखी होते हो और मुश्किल से खुश होते हो ?
मेरा ऐसा मानना है की अच्छी और बुरी आदतों को सिमित जगह तक ही रखना आपको गलत रास्तो पर ले जा सकता है. लोगो में बुरी आदतों को जल्दी अपनाने की और उन्हें विकसित करने की आदत होती है जबकि अच्छी आदते बड़ी मुश्किल और लाख कोशिशो के बाद ही लगती है. और इसी वजह से हम एक-दुसरे से नाराज़ रहते है. हमें हमारी आंतरिक भावना को सोच-समझकर ही बाहर लाना चाहिये. आंतरिक भावना के बारे में विचार करते हुए हमें सकारात्मक भावनाओ को बाहर लाना चाहिये और नकारात्मक भावनाओ को नष्ट कर देना चाहिये.
इसके विपरीत ख़ुशी का अहसास, प्यार, आकर्षण, ध्यान रखना, दया और करुणा ये सब हमें अपने स्वभाव में ही दिखाई देता है. हमारा स्वभाव ही हमारे गुणों को दर्शाता है और हमारे स्वभाव पर ही हमारा खुश रहना निर्भर करता है.
रिश्तो में आयी खटास को दूर करने का शबे आसान उपाय अपने स्वभाव को नम्र बनाना और परिस्थिति चाहे आपके अनुकूल हो या विपरीत हमेशा मुस्कुराते रहना ही है. खुश रहने के लिये आपको अपने स्वभाव को बदलने की जरुरत होगी.
4) अपनी परीभाषा को बदले :
अपनी परीभाषा को इस कदर बनाये की आप आसानी से खुश हो जाये और बड़ी मुश्किल से मायूस हो पाये. निश्चित करे की आपका सबसे अच्छा दिन आज ही है, आज ही आप आसानी से मनचाही जिंदगी जी सकते हो. इन बातो को हमेशा याद रखे तभी आपके जीवन में ख़ुशी, प्यार, आज़ादी हमेशा बनी रहेंगी.
यदि आपसे कोई यह प्रश्न करता है की आप बहोत खुश और उत्साही कैसे रहते हो? तो आपका जवाब, “मै इसलिए खुश हु क्योकि मै आज में जीता हु और आसानी से सांस ले पाटा हु और आसानी से खुश हो जाता हु” होना चाहिये.
आपका ये रवैया आपको एक खुशनुमा जिंदगी जीने में सहायक साबित होगा. और आप हमेशा के प्यार, आकर्षण, सहायक और दया, करुणा के वातावरण में रहने लगोगे, जिससे आपका स्वास्थ और आपकी संपत्ति दोनों ही सुरक्षित होंगे.
आसानी से खुश होने के अलावा एक और बात है जो आपमें होनी चाहिये, और वह है की आसानी से दुखी न होना. किसी भी इंसान के लिये आपको दुखी कर पाना असंभव होना चाहिये. अपने मायूसी की एक सीमा निश्चित कर ले. ठान ले की आप तभी मायूस होंगे जब आपका दिन में 10 लाख डॉलर से भी ज्यादा का नुकसान होगा, यदि इस तरह की कोई घटना आपके जीवन में होती है तो आपको मायूस होना चाहिये. यदि आप इन सीमाओ को अपने जीवन में उपयोग करो तो आप कभी आसानी से मायूस नहीं हो पायेंगे. और आप जिंदगीभर खुश रह पायेंगे.
5)  इन शर्तो को प्रयोग में लाये :
आप जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिये ही सारे बदलाव करते हो. इन आदतों को बढाने के लिये आपको नम्र, इमानदार और लगातार किशिशे करते रहने की जरुरत है. हर समय आपको जीवन की इस नयी परीभाषा का ज्ञान होना चाहिये. इन सभी शर्तो को बहोत सारे पन्नो पर लिखे और उन्हें घर में अलग-अलग जगहों पर लगाये. ताकि बार-बार आपका ध्यान उनकी तरफ जाये. आप इन सभी शर्तो को अपने कंप्यूटर, लैपटॉप या मोबाइल का वॉलपेपर बनाकर भी रख सकते हो.
ऐसा करने से कुछ ही दीनो में आपकी बुरी आदते अच्छी आदतों में परीवर्तित हो जाएँगी, और आप खुद को इस दुनिया का सबसे खुश इंसान पाओगे. ऐसा करने से आप हमेशा खुश रह सकते हो. और अपने रवैये से दूसरो को कैसे खुश किया जा सकता है यह भी सिख सकते हो.
और इस दुनिया में गुस्सा, नफरत, मायूसी और मुसीबत के लिये कोई जगह नही होंगी.
एक बात हमेशा याद रखे…….
प्यार और ख़ुशी की हर जगह जीत होती है.

घर बनाने से ज्यादा वक्त बंगला बनाने में लगता है.



“जो विद्यार्थी प्रश्न पूछता है वह पाच मिनट के लिए मुर्ख रहता है, 
पर जो प्रश्न पूछता ही नहीँ वो जिंदगीभर के लिए मुर्ख बन जाता हैं.”

“जिस छात्र को किसी विषय में सबसे ज्यादा ज्ञान प्राप्त करना है, 
तो उसे सबको पहले ज्ञान देना भी होंगा..”

“अगर किसी और की तुलना में आप को सफलता के लिए ज्यादा वक्त लग रहा है, 
तो बिलकुल भी निराश नहीं होनी चाहियें, क्योकि…. घर बनाने से ज्यादा वक्त बंगला बनाने में लगता है.”

“एक छात्र को अपने स्कुल के समय सिर्फ और सिर्फ अपने पढाई पर ध्यान केन्द्रित करना चाहियें, 
वरना बाद ने उसपर और कोई ध्यान नहीं देंगा.”

“जिस छात्र को ज्ञान की लालसा हैं, 
उसे हर चीज ज्ञानवर्धक ही नजर आती हैं.”

अच्छे विचार

1. “सफलता पाने का सुनहरा अवसर इंसान में ही होता है न की किसी काम में”

2. “जब मै जीवन के अंतिम क्षणों में परमात्मा के सामने खड़ा रहूगा, तब मै चाहता हु की मेरे पास टैलेंट की एक बूंद भी ना हो, ताकि मै परमात्मा से कह सकू की, तुमने जो दिया उन सब का मैंने उपयोग कर लिया”
3. “एक चिड़िया की तरफ देखो, जिसे ये भी नहीं पता होता है की अगले ही पल वह क्या करने वाली होगी. तो क्यू ना हम पूरा जीवन एक-एक पल की तरह जिये”
4. “नसीब/तक़दीर/भाग्य/किस्मत महेनत का ही एक हिस्सा है. जितनी ज्यादा आप महेनत करोगे उतने ही ज्यादा आप नसीबवाले बनते जाओगे.”


5. “आपको अपना सबसे बड़ा दुश्मन और सच्चा मित्र आपके अंदर ही मिलेगा”
6. “साहस इंसान का पहला गुण है, क्योकि इंसान के बाकी सारे गुण साहस ही निश्चित करता है”
7. “अपने हर एक दिन को ऐसे जिये जैसे अभी-अभी आपका जीवन शुरू हुआ है”
8. “एक सफल व्यक्ति और दुसरे व्यक्ति में फरक शक्ति और बुद्धि की कमी होना नहीं है बल्कि इच्छा की कमी होना है”
9. “अपनी असफलता के बारे में चिंतित रहने की बजाये उस मौके के बारे में चिंतित रहिये जिसे कोशिश किये बिना ही आपने खो दिया”
10. “जीवन के दो ही नियम है, 1. कभी ना छोड़े/ कभी हार ना माने 2. नियम नंबर 1 कभी ना भूले”
11. “वहा कभी मत जाओ जहा आपका रास्ता आपको ले जाये, बल्कि वहा जाओ जहा कोई रास्ता न हो और आप अपने लिए रास्ता बनाओ”
12. “बहोत से लोग असफलता से तंग आकर अपने काम को बिच में ही छोड़ देते है, लेकिन तब वे ये नहीं जानते के उस समय वे सफलता के बहोत करीब होते है”
13. “कोई भी श्रेष्ट काम पहले असंभव ही होता है”
14. “जीवन का पहला नियम, वही करे जो आपको आनंद दे”
15. “केवल लक्ष्य रखना पर्याप्त नहीं, उसके लिए प्रयत करना बहोत जरुरी है”
16. “चुनौतिया वे होती है जो जीवन को मजेदार बनाती है और जीवन को सार्थक बनाती है”
17. “रूकावट अक्सर कुछ पाने का प्रारंभिक प्रयास होती है”
18. “मै अपनी परिस्थितियों का परिणाम नहीं बल्कि अपने निर्णयों का परिणाम हु”
19. “दिमाग सबकुछ है. आप जो सोचते हो वही बनते हो”
20. “मै उन लोगो का आभारी हु जिन्होंने मुझे ना कहा. क्यू की उन्ही की वजह से मैंने खुद उसे करना शुरू किया”

Note : अगर आपके पास और भी अच्छे विचार हैं तो जरुर कमेन्ट के मध्यम से भजे अच्छे लगने पर हम इस लेख में शामिल करेगे.

भारतीय हरित क्रांति का जनक.

एम एस स्वामीनाथन एक भारतीय जेनेटिक वैज्ञानिक और भारत में हरित क्रांति में मुख्य भूमिका अदा करने वाले व्यक्ति थे. विज्ञान और अभियांत्रिकी के क्षेत्र में स्वामीनाथन ने अपना अतुलनीय योगदान दिया है. स्वामीनाथन को “भारतीय हरित क्रांति का जनक” भी कहा जाता है, उन्ही की बदौलत भारत में गेहू की पैदावार में बढ़त हुई है. इसके साथ ही वे एम्.एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष भी है. उन्होंने अपने कार्य की शुरुवात गरीबी और भुखमरी को हटाने के नेक इरादे से की थी. भारत में कृषि क्षेत्र में हो रहे सतत विकास में स्वामीनाथन में मुख्य भूमिका निभाई है, विशेष तौर पे उन्होंने अनाज की सुरक्षा और अन्न संवर्धन की और ज्यादा ध्यान दिया और उनके इसी कार्य ने आगे चलके एक क्रांति का रूप धारण कर लिया जिसे हरित क्रांति का नाम दिया गया था.

1972 से 1979 तक वे इंडियन कौंसिल ऑफ़ एग्रीकल्चरल रिसर्च के डायरेक्टर थे. और 1979 से 1980 तक वे मिनिस्ट्री ऑफ़ एग्रीकल्चर फ्रॉम के प्रिंसिपल सेक्रेटरी भी रहे. 1982 से 1988 तक उन्होंने जनरल डायरेक्टर के पद पर रहते हुए इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टिट्यूट की सेवा भी की और बाद में 1988 में इंटरनेशनल यूनियन फॉर कान्सर्वेशन ऑफ़ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज के प्रेसिडेंट भी बने.
1999 में टाइम पत्रिका ने उन्हें 20 वी सदी के सबसे प्रभावशाली लोगो की सूचि में भी शामिल किया.
एम.एस. स्वामीनाथन का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा : Dr ms swaminathan Early Life Information & History In Hindi
एम.एस. स्वामीनाथन / Ms Swaminathan का जन्म कुम्बकोनम में 7 अगस्त 1925 को हुआ था. वे सर्जन डॉ. एम.के. सम्बसिवन और पार्वती ठंगम्मल सम्बसिवन के दुसरे बेटे थे. एम.एस. स्वामीनाथन ने अपने पिता से यही सिखा की, “असंभव शब्द ही हमारे दिमाग की इच्छाओ को क्रियाशील करने में सहायक होता है, क्योकि असंभव शब्द का सामना करके ही हम बड़े से बड़े लक्ष्य को हासिल कर सकते है.” सर्जन एम.के. सम्बसिवन, महात्मा गांधी के अनुयायी है, उन्होंने “विदेशी कपडे जलाओ” अभियान में भी महात्मा गांधी का साथ दिया था, जिसका मुख्य उदेश्य देश से विदेशी वस्तुओ को हटाकर स्वदेशी वस्तुओ को अपनाना था. उस समय अधिकतर लोगो ने विदेशी कपड़ो का विरोध किया था और भारतीय खादी के कप्दोको प्राधान्य दिया था. इस अभियान का राजनैतिक उद्देश्य भारत को अंग्रेजो पर निर्भर रहने से बचाना था और भारतीय ग्रामीण उद्योग को बढ़ावा देना था. उनके पिता ने दलितों के लिये मंदिर बनवाये, और उस समय बीमारियों से ग्रसित ग्रामीणों का मुफ्त इलाज भी किया. बचपन से ही स्वामीनाथन में अपने पिता जैसे परोपकार करने की भावना थी.
स्वामीनाथन के पिता की मृत्यु के समय उनकी आयु केवल 11 साल की ही थी और उनके अंकल एम.के. नारायणस्वामी अब उनके देखभाल करते थे. वही उन्होंने स्थानिक स्कूल से शिक्षा प्राप्त की और बाद में कुम्बकोनम के कैथोलिक लिटिल फ्लावर हाई स्कूल से माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की और 15 साल की आयु में स्वामीनाथन ने मेट्रिक की परीक्षा भी पास कर ली थी. बाद में अंडर ग्रेजुएट की पढाई पूरी करने के लिये वे त्रिवेंद्रम, केरला के महाराजा कॉलेज में गये. वहा उन्होंने 1940 से 1944 तक पढाई की और जूलॉजी में बैचलर ऑफ़ साइंस की डिग्री हासिल की.
डिग्री हासिल करने के बाद स्वामीनाथन ने एग्रीकल्चर में करियर बनाने का निर्णय लिया. इसके लिये मद्रास के एग्रीकल्चर कॉलेज में भी वे दाखिल हुए (अभी तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी) वहा वेलिडिक्टोरीयन (Valedictorian) में अपना ग्रेजुएशन पूरा किया और बैचलर ऑफ़ साइंस की उपाधि हासिल की, लेकिन इस समय उन्होंने डिग्री एग्रीकल्चर के क्षेत्र में हासिल की थी. उन्होंने करियर से सम्बंधित अपने निर्णय को इस कदर बताया की : “मुझे 1943 में बंगाल में सुखा देखकर वैयक्तिक प्रेरणा मिली, उस समय मई यूनिवर्सिटी ऑफ़ केर्लाका विद्यार्थी था. वहा तीव्र चावल जमा करके रखा गया था और तक़रीबन 3 लाख लोग बंगाल में भूक की वजह से मारे गये थे. इसिलिये उस समय हर एक इंसान आज़ादी के लिये संघर्ष कर रहा था और इसीलिये मैंने देश के लिये कुछ करने की चाह से किसानो को सहायता करने के उद्देश्य से एग्रीकल्चर रिसर्च को चुना.”
1947 में, भारत की आज़ादी के साल साल ही वे इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टिट्यूट (IARI), नयी दिल्ली गये जहा वे उस समय जेनेटिक के पोस्ट ग्रेजुएट विद्यार्थी थे. 1949 में उन्होंने ऊँचे पद पर रहते हुए साइटोजेनेटिक्स में पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री प्राप्त की. बाद में उन्होंने यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा दी और इंडियन पुलिस सर्विस में लग गये.
बाद में उन्होंने वगेनिंगें एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, इंस्टिट्यूट ऑफ़ जेनेटिक इन नीदरलैंड में IARI में आलू के जेनेटिक पर रिसर्च करने के लिये UNESCO के सहचर्य को स्वीकार कर लिया. और भारत में वे पौधों की पैदावार को बढ़ाने के लिये सतत रिसर्च कर ही रहे थे.
अतःस्वामीनाथन ने अंर्तराष्ट्रीय संस्थान में चावल पर शोध किया. उन्होने चावल की जापानी और भारतीय किस्मों पर शोध किया. 1965 में स्वामीनाथन के भाग्य ने पलटा खाया और उन्हे कोशा स्थित संस्थान में नौकरी मिल गई.वहा उन्हे गेहुँ पर शोध कार्य का दायित्व सौंपा गया. साथ ही साथ चावल पर भी उनका शोध चलता रहा.वहा के वनस्पति विभाग में किरणों के विकिरण की सहायता से परिक्षण प्रारंभ किया और उन्होने गेहँ की अनेक किस्में विकसित की. अनेक वैज्ञानिक पहले आशंका व्यक्त कर रहे थे कि एटमी किरणों के सहारे गेहुँ पर शोध कार्य नही हो सकता पर स्वामीनाथन ने उन्हे गलत साबित कर दिया. 1970 में सरदार पटेल विश्वविद्यालय ने उन्हे डी एस सी की उपाधी प्रदान की. 1969 में डॉ. स्वामीनाथन इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी के सचीव बनाये गये. वे इसके फैलो मेंम्बर भी बने. इससे पूर्व 1963 में हेग में हुई अंर्तराष्ट्रीय कॉनफ्रेंस के उपाध्यक्ष भी बनाये गये. 1954 से 1972 तक डॉ स्वामीनाथन ने कटक तथा पूसा स्थित प्रतिष्ठित कृषी संस्थानो में अद्वितिय काम किया. इस दौरान उन्होने शोध कार्य तथा शिक्षण भी किया. साथ ही साथ प्रशासनिक दायित्व को भी बखूबी निभाया. अपने कार्यों से उन्होने सभी को प्रभावित किया और भारत सरकार ने 1972 में भारतीय कृषी अनुसंधान परिषद का महानिदेशक नियुक्त किया. साथ में उन्हे भारत सरकार में सचिव भी नियुक्त किया गया.

भारत लाखों गाँवों का देश है और यहाँ की अधिकांश जनता कृषि के साथ जुड़ी हुई है. इसके बावजूद अनेक वर्षों तक यहाँ कृषि से सम्बंधित जनता भी भुखमरी के कगार पर अपना जीवन बिताती रही. इसका कारण कुछ भी हो, पर यह भी सत्य है कि ब्रिटिश शासनकाल में भी खेती अथवा मजदूरी से जुड़े हुए अनेक लोगों को बड़ी कठिनाई से खाना प्राप्त होता था. कई अकाल भी पड़ चुके थे. भारत के सम्बंध में यह भावना बन चुकी थी कि कृषि से जुड़े होने के बावजूद भारत के लिए भुखमरी से निजात पाना कठिन है. इसका कारण यही था कि भारत में कृषि के सदियों से चले आ रहे उपकरण और बीजों का प्रयोग होता रहा था. फसलों की उन्नति के लिए बीजों में सुधार की ओर किसी का ध्यान ही नहीं गया था. एम.एस. स्वामीनाथन ही वे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने सबसे पहले गेहूँ की एक बेहतरीन किस्म को पहचाना और स्वीकार किया. इस कार्य के द्वारा भारत को अन्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाया जा सकता था. यह मैक्सिकन गेहूँ की एक किस्म थी, जिसे स्वामीनाथन ने भारतीय खाद्यान्न की कमी दूर करने के लिए सबसे पहले अपनाने के लिए स्वीकार किया. इसके कारण भारत के गेहूँ उत्पादन में भारी वृद्धि हुई. इसलिए स्वामीनाथन को “भारत में हरित क्रांति का जनक” माना जाता है. स्वामीनाथन के प्रयत्नों का परिणाम यह है कि भारत की आबादी में प्रतिवर्ष पूरा एक ऑस्ट्रेलिया समा जाने के बाद भी खाद्यान्नों के मामले में वह आत्मनिर्भर बन चुका है. भारत के खाद्यान्नों का निर्यात भी किया है और निरंतर उसके उत्पादन में वृद्धि होती रही है.
    स्वामीनाथन के सम्मान पुरस्कार और अंतर्राष्ट्रीय उपलब्धिया : Dr ms swaminathan Awards :
    • विज्ञान और तंत्रज्ञान में सराहनीय योगदान के लिये एच.के. फिरोदिया अवार्ड.
    • फ्रीडम ऑफ़ स्पीच, फ्रीडम ऑफ़ रिलिजन, फ्रीडम फ्रॉम वांट एंड फ्रीडम फ्रॉम फियर के तत्व में अमूल्य उपलब्धियों के लिये 2000 में चार फ्रीडम अवार्ड दिये गये.
    • सन 2000 में एशिया में हरित क्रांति के क्षेत्र में बेहतरीन रिसर्च करने और भारतीय कृषि का विकास करने हेतु प्लेनेट एंड ह्यूमैनिटी मैडल ऑफ़ इंटरनेशनल ज्योग्राफिकल यूनियन अवार्ड.
    • पर्यावरण और वातावरण की सुरक्षा करने के क्षेत्र में सराहनीय कामगिरी के लिये UNEP ससकावा एनवायरनमेंट प्राइज.1994 में वे पॉल और ऐनी एह्र्लिच के साथ सह-विजेता थे, जिन्हें कुल 200,000$ का पुरस्कार मिला था.
    • पर्यावरणीय उपलब्धियों के लिये द टाइलर प्राइज का पुरस्कार, ये पुरस्कार उन्हें बायोलॉजिकल प्रोडक्टिविटी बढ़ाने और पर्यावरण संतुलन बनाये रखने के लिये दिया गया,1991.
    • 1991 में इकोटेक्नोलॉजी में अतुलनीय योगदान के लिये हौंडा प्राइज.
    • 1989 में पद्म विभूषण
    • 1987 में अनाज की गुणवत्ता और उत्पादन क्षमता बढाने और कृषि क्षेत्र में विकास की नीव खडी करने के लिये वर्ल्ड फूड प्राइज दिया गया.
    • 1987 को प्रेसिडेंट कोराजॉन एक्विनो द्वारा गोल्डन हार्ट प्रेसिडेंशियल अवार्ड ऑफ़ द फिलीपींस का पुरस्कार दिया गया.
    • 1986 में इंटरनेशनल एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट और जेनेटिक प्लांट में उनके योगदान के लिये अल्बर्ट आइंस्टीन वर्ल्ड अवार्ड ऑफ़ साइंस का पुरस्कार.
    • 1979 में वैज्ञानिको को प्रेरित करने और योग्य सलाह और मशवरा देने हेतु बोरलॉग अवार्ड दिया गया.
    • 1972 में पद्म भुषण से सम्मानित किया गया.
    • कम्युनिटी लीडरशिप के लिये 1971 में रमन मैग्सेसे अवार्ड दिया गया.
    • 1967 में पद्म श्री.
    • फॉरेन फेलो ऑफ़ बांग्लादेश अकैडमी ऑफ़ साइंस का सम्मान. उन्होंने पुरे विश्व से तक़रीबन 50 से ज्यादा डॉक्टरेट की डिग्री हासिल कर रखी है.
    एम.एस. स्वामीनाथन  के राष्ट्रिय पुरस्कार- Ms Swaminathan National Awards :
    • भारत में भी उन्हें काफी पुरस्कारों से सम्मानित किया गया और उनके द्वारा किये गये कामो की सराहना की गयी.
    • 2007 की NGO कॉन्फ्रेंस में iCONGO द्वारा कर्मवीर पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया गया.
    • अन्न-धान्य सुरक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिये उन्हें 2004 में दुपोंट-सलाइ अवार्ड दिया गया.
    • 2003 में बायोस्पेक्ट्रम ने उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया.
    • 2002 में मानव विकास क्षेत्र में उनके योगदान के लिये एशियाटिक सोसाइटी द्वारा इंदिरा गांधी गोल्ड प्लाक पुरस्कार दिया गया.
    • शांति के लिये इंदिरा गांधी पुरस्कार दिया गया.
    • भारतीय हरित क्रांति और अतुलनीय वैज्ञानिक और पर्यावरणीय कामो के लिये सन् 2001 में उन्हें तिलक स्मारक ट्रस्ट ने लोकमान्य तिलक अवार्ड से सम्मानित किया.
    • 2000 में तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी द्वारा मिलेनियम अलुमनुस अवार्ड दिया गया.
    • सन् 1999 में प्रो. पी.एन. महरा मेमोरियल अवार्ड.
    • 1999 में वर्ल्ड विल्डरनेस ट्रस्ट द्वारा लीजेंड इन लाइफटाइम अवार्ड में हकदार.
    • 1997 में एग्रीकल्चर रिसर्च और नेशनल अकैडमी ऑफ़ एग्रीकल्चरल साइंस में विकास करने के लिये डॉ. बी.पी. पाल मैडल के हक़दार.
    • राष्ट्रिय विकास में अमूल्य योगदान के लिये 1997 में व्ही. गंगाधरण अवार्ड देकर सम्मानित किया गया.
    • 1992 में लाल बहादुर शास्त्री देशगौरव सम्मान दिया गया.
    • बोस इंस्टिट्यूट द्वारा 1989 में डॉ. जे.सी. बोस मैडल दिया गया.
    • कृषि के क्षेत्र में क्रांतिकारक योगदान के लिये भारत कृषक समाज द्वारा 1986 में प्रेजिडेंट ज्ञानी ज़ैल सिंह ने उन्हें कृषि रत्न अवार्ड से सम्मानित किया.
    • 1981 में विश्व भारती यूनिवर्सिटी का रवीन्द्रनाथ टैगोर पुरस्कार.
    • इंडियन एनवायर्नमेंटल सोसाइटी द्वारा 1981 में आर.डी. मिश्रा मैडल दिया गया.
    • जेनेटिक में अपने योगदान के लिये 1978 में एशियाटिक सोसाइटी द्वारा बार्कले मैडल दिया गया.
    • स्टैंडरडाईसेशन में अपने अतुल्य योगदान के लिये इंडियन स्टैंडर्ड्स ब्यूरो द्वारा मौड़गिल प्राइज दिया गया.
    • बॉटनी विभाग में अपने योगदान के लिये 1965 में इंडियन बोटैनिकल सोसाइटी द्वारा बीरबल साहनी मैडल दिया गया.
    • 1961 में बायोलॉजिकल साइंस में अपने योगदान के लिये उन्हें शांति स्वरुप भटनागर अवार्ड दिया गया.
    • राष्ट्रिय क्रांति लाने के लिये इंडियन नेशनल कांग्रेस की और से इंदिरा गांधी अवार्ड दिया गया.
    स्वामीनाथन के इंटरनेशनल अवार्ड – Ms Swaminathan International Awards :
    • स्वामीनाथन को बहोत से अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है-
    • बायोटेक्नोलॉजी और देश में कृषि के क्षेत्र में और पर्यावरण के क्षेत्र में विकास करने के लिये 1999 में UNESCO महात्मा गांधी स्वर्ण पदक दिया गया.
    • मानवता को बढ़ावा देने और एग्रीकल्चर का विकास करने हेतु 1998 में USA में मिसौरी बोटैनिकल गार्डन के बोर्ड ऑफ़ ट्रस्टी द्वारा हेनरी शॉ मैडल दिया गया.
    • 1997 में फ्रांस सरकार ने उन्हें आर्द्र दु मैरिटे अग्रिकोले अवार्ड दिया गया.
    • 1997 में चीन सरकार ने उनके रिसर्च और पराक्रमो को देखते हुए उन्हें अपना सर्वोच्च अवार्ड देकर सम्मानित किया.
    • ग्रामीण भागो का विकास करने और ग्रामीण भागो की परिस्थिति सुधारने में अपना सहयोग देने के लिये 1995 में ग्लोबल एनवायर्नमेंटल लीडरशिप अवार्ड दिया गया.
    • 1994 में वर्ल्ड अकैडमी ऑफ़ आर्ट एंड साइंस ने सम्मानित किया.
    • 1994 में एशियाई उत्पादन संस्था APO द्वारा एशियन रीजनल अवार्ड दिया गया.
    • 1993 में चार्ल्स डार्विन इंटरनेशनल साइंस एंड एनवायर्नमेंटल मैडल दिया गया.
    • 1990 में नीदरलैंड में उन्हें गोल्डन आर्क का सम्मान दिया गया.
    • रिसर्च की दुनिया में अतुलनीय कामगिरी करने के लिये और भारतीय अनाज का उत्पादन बढाने के लिये द वॉल्वो एनवायर्नमेंटल प्राइज दिया गया.
    • 1985 में एसोसिएशन फॉर वीमेन राइट्स इन डेवलपमेंट (AWID) ने उन्हें इंटरनेशनल अवार्ड देकर सम्मानित किया.
    • 1985 में जॉर्जिया यूनिवर्सिटी ने उन्हें बिसेंटेनरी मैडल देकर सम्मानित किया.
    • अन्न सुरक्षा और संवर्धन में अपने योगदान के लिए 1984 में उन्हें रॉयल सोसाइटी ऑफ़ आर्ट द्वारा बेनेट कामनवेल्थ प्राइज दिया गया.
    1965 में प्लांट जेनेटिक के क्षेत्र में उनके योगदानो के लिये ग्ज़ेचोस्लोवाल अकैडमी ने उन्हें सम्मानित किया.

    Please Note :- अगर आपके पास Ms Swaminathan Biography In Hindi मैं और Information हैं, या दी गयी जानकारी मैं कुछ गलत लगे तो तुरंत हमें कमेंट मैं लिखे हम इस अपडेट करते रहेंगे. धन्यवाद

    मानवी जीवन का उद्देश

    कैसे हम खुश रह सकते है?
    एक समय की बात है, 50 लोगो का एक समूह किसी सेमीनार में उपस्थित होने के लिए गया था तभी सेमीनार में अचानक बोलने वाले ने बोलना बिच में ही बंद कर दिया और कुछ सामूहिक मिलकर करने की ठानी. उसने उपस्थित सभी लोगो को एक गुब्बारा देना शुरू किया. जिसपे सभी को एक मार्कर पेन से अपना-अपना नाम लिखना था. और बाद में सभी गुब्बारों को जमा किया गया और एक अलग कमरे में ले जाकर रखा गया और बाद में सभी को उसी कमरे में भेजा गया और सभी को अपने-अपने नाम का गुब्बारा 5 मिनट के अंदर धुंडने को कहा. सभी लोग जल्द से जल्द अपने नाम के गुब्बारे को धुंडने में लगे रहे, एक-दुसरे को धक्का देने लगे, सभी लोग गड़बड़ी करने लगे थे.
    5 मिनट के अंत में किसी को भी अपने नाम का गुब्बारा नही मिला था अब सभी से कहा गया था की एक-एक गुब्बारा उठाये और उसपे जिसका भी नाम होंगा उसे वह दे-दे अब 5 मिनट के अंदर ही सभी के पास अपने-अपने नाम का गुब्बारा था.

    तभी उसने बोलना शुरू किया – यही गतिविधि हमारे जीवन में भी होने लगी है. हर कोई जल्दबाजी में अपने आस-पास ख़ुशी धुंडने में लगा हुआ है, बल्कि उसे ये पता भी नही होता है की उसे वह ख़ुशी कहा मिलेंगी.
    हमारी ख़ुशी दूसरो की ख़ुशी में ही छुपी होती है. आप दूसरो को उसकी ख़ुशी दीजिये, आपको अपनी ख़ुशी अपनेआप ही मिल जाएँगी.
    और यही मानवी जीवन का उद्देश है.

    सबसे बड़ा रोग क्या काहेंगे लोग..

    इस कहावत से यही बात सामने आती हैं की मधुम्ख्खियो को या किसी भी जानवर को इस बात का फर्क नहीं पड़ता की उनके बारे मे बाकी क्या सोचते हैं, पर इन्सान की एक यही आदत सभी समस्याओ की जड़ हैं हमारी सोच की लोग क्या कहेगे, लोग क्या सोचेगे, उनको क्या लगेगा इसी सोच की वजह से हम कुछ भी खुलकर और Confident के साथ नहीं कर पाते. क्योकी हम कोई भी काम करने से पहले दस बार लोगे के बारे मैं सोचते हैं और अगर हम कोई काम करेगे और इसमें हम कामयाब नहीं हो पाये तो मेरे दोस्त, रिश्तेदार, पडोसी, मेरे पहचानवाले मेरे बारेमे क्या सोचेगे इस डर की वजह से हम कोई भी काम करने से कतराते हैं. लेकिन जिंदगी मैं अगर कुछ बड़ा काम करना होगा तो लोगो के बारे मैं सोचना छोड़ देना होगा.
    आपको एक कहानी बताता हु…
    एक दिन एक आदमी मार्निंग वाक को गया तभी उसने एक गली मैं एक लड़के को कचरा उठाते हुये देखा वहां के दो-चार कुत्ते उस पर भोक रहे थे उस आदमी ने उस लड्के की एक बात गोर की वो भोकते हुये कुत्तो को देखकर उस लड़के के चेहरेपर न कोई डर न उस लड़के का उन कुत्तो पर कोई ध्यान था वह लड़का बस अपना कचरा उठाने का काम कर रहा था वो लड़का वहासे दूसरी गली मैं गया तो दूसरी गली के कुत्ते भी उसे देखकर भोकने लगे वहा पर भी उस लड़के ने कुत्तो की तरफ ध्यान न देकर अपना कचरा उठाने के काम को करता रहा. उस लड़के ने कचरा उठाकर दो-चार  सौ रूपये कमा लिये और भोकने वाले भोकते रहे गये.

    तो दोस्तों, यहीं सोच हम हमारी जिंदगी में अपनाये तो हम कभी पिछे नहीं रहगे. और हम अपना काम लोगो की सोच को ध्यान में रखकर नहीं करेगे तो पुरे करेगे. वो कहावत हैं न  ”सुनो सब की करो मन की ”

    सर्वश्रेष्ठ शासक

    एक बार किसी बड़े देश के राजा ने सर्वश्रेष्ठ शासक के लिए पुरस्कार समारोह करवाने के सोचा तो उसने सभी पडोसी राज्यों के शासकों को न्योता दिया | पडोसी राज्यों के शासक नियत समय पर राजदरबार में आ पहुंचे |
    सभी के आ जाने के बाद राजा ने उन सबको अपनी उपलब्धियों के बारे में बताने को कहा |  एक शासक ने कहा उसके राज्य में उसके काल के दौरान उसके राज्य की जो आय है वो दोगुनी हो गयी है |  दूसरे ने बताया उसके राज्य काल के दौरान उसके राज्य में स्वर्ण मुद्रयों के भंडार स्थापित हो गये है |  किसी ने कहा कि उसने अपने शासनकाल के दौरान युद्ध के लिए काम में आने वाले हथियारों की व्यवस्था कर ली है |

    इस तरह सभी राज्य के राजाओं ने अपनी अपनी सफलताएँ गिनायीं |  लेकिन अंत में एक राजा ने सकुचाते हुए कहा कि मेरे राज्य में न तो स्वर्ण मुद्रा के कोष में वृद्धि हुई है और न ही ऐसा है कि मेरी आय बढ़ी है और मेने तो अपने राज्य में हथियारों में भी वृद्धि नहीं है क्योंकि मेने अपने राज्य में जनता जो अधिक से अधिक लाभ देने का आदेश दे दिया है इसी वजह से मेरा राजकोष भी कम हो गया है क्योंकि मेने राजकोष का धन अधिक से अधिक पाठशाला खुलवाने और अस्पताल बनवाने में खर्च किया है और मेरे राज्य में वृक्षारोपण पर भी अधिक से अधिक जागरूकता से काम होता है इसलिए मेरा ध्यान राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए गया ही नहीं है |
    लेकिन हाँ इतना है कि ये सब करने से मेरे राज्य में युवाओं को रोजगार मिला है और जनता खुश है इसके अलावा मेरी कोई विशेष उपलब्धि नहीं है  |  राजा ने उसे ही विजेता घोषित करते हुए कहा कि असल में तुम ही सच्चे शासक को क्योंकि प्रजा हित से बढ़कर तो कुछ नही है प्रजा को रोजगार के अवसर देना और उसकी जीविका के साधन उपलब्ध करवाना ही प्रजा धर्मं है और तुम श्रेष्ठ हो |

    अंतिम इच्छा

    एक चोर से हत्या हो गयी सो राजा ने उसे फांसी की सज़ा के लिए दोषी पाया और उसे फांसी सुना दी गयी और उस से उसकी अंतिम इच्छा के बारे में पुछा गया तो उसने अपनी माता से मिलने की इच्छा जाहिर की |
    इस पर उसकी माता को दरबार में बुलाया गया | वह अपना मुह अपनी माता के कान के पास ले गया और अपने दांत अपनी माता के कान में गडा दिए | उसकी माता चीत्कार कर उठी तो सभा में मौजूद सभी लोगो ने उसे धिक्कारा और उस से बोला कि तुम्हारे पिता तो कबके जा चुके थे और ये तुम्हारी माता ही थी जिसने बड़े कष्टों के साथ तुम्हे पाल पोसकर बड़ा किया | इसी माँ को तूने अंतिम समय में इतना दर्द दिया है |

    इस पर चोर बोला कि इसने मुझे जन्म दिया इस नाते ये मेरी माँ तो अवश्य है लेकिन माँ वो होती है जो जीवन का निर्माण करती है संस्कार देकर संतान का कल्याण सुनिश्चित करती है लेकिन इसने जब मैं बचपन में छोटा था तो बच्चो की पेन्सिल और चीज़े चुरा लिया करता था और घर आने के बाद इसे बताने पर कभी भी मुझे इस काम के लिए मना नहीं किया उल्टा खुश होती थी इसलिए मैं बेधड़क चोरियां करता और फिर चोरी को ही अपना व्यवसाय बना दिया | इसने मुझे मूक समर्थन दिया और कभी भी मुझे नहीं रोका तो मेरा होसला भी बढ़ता गया और मैं बड़ी बड़ी चोरिया भी करने लगा और अब जो मेने हत्या की थी वो भी चोरी के काम में बाधा आने के कारन मुझसे अनजाने में हो गयी |
    और चूँकि मेरी माता ने कभी भी मुझे आगामी स्थितयों से मेरा परिचय नहीं करवाया इसलिए मैं किसी भी बुरे काम को अनुचित नहीं मानता था इसलिए मैंने हत्या भी करदी और यही वजह है कि मेरा जीवन समाप्त होने जा रहा है मेरे पास समय नहीं है नहीं तो मैं इस गलती के लिए इसके कान पकड़वाता | इसलिए मेने इसे ये दर्द दिया ताकि अन्य लोग भी इस से शिक्षा लें |

    हम उतना ही पाते है जितना किसी दूसरे को देने में हम समर्थ होते है.




    एक दिन एक बच्चा अपनी माँ से नाराज हो जाता है तो जब उसे डांट दिया जाता है तो गुस्सा होकर वो घर से बाहर चला जाता है और घर से थोड़ी दूर एक पहाड़ी पर जाकर जोर से चिल्ला  कर बार बार  कहता है कि ” मैं तुमसे नफरत करता हूँ ” तो थोड़ी ही देर बाद उसे अपनी ही प्रतिध्वनी सुनाई देती है तो वो बच्चा जिसे नहीं पता कि ये आवाज क्यों आती है उसे लगता है कि उस तरफ भी कोई है जो उस से यही कह रहा है तो वो डर जाता है वापिस अपनी माँ के पास आकर पूरी बात बताता है तो उसकी माँ समझ जाती है और बच्चे को वापिस उसी पहाड़ी पर लेजाकर कहती है अब तुम ये कहो कि ” मैं तुमसे प्यार करता हूँ ” तो वो फिर वही आवाज गूंजी तो उसकी माँ ने कहा कि देखो तुमने जब ये कहा कि ” मैं तुमसे नफरत करता हूँ” तो सामने से भी तुम्हे यही सुनने को मिला लेकिन जन्हा तुमने अपनी नफरत को प्यार में बदल दिया वन्ही सामने वाले का नजरिया भी तुम्हारे लिए बदल गया |

    काल्पनिक रस्सी

    एक व्यापारी था जिसके पास उसके अपने पांच ऊँट थे जिन पर सामान लादकर वो शहर शहर घूमता और कारोबार करता था और अपना व्यापार किया करता था | एक बार लौटते हुए रात हो गयी | तो वो रात को आराम करने के लिए एक सराय में रुका और और पेड़ोसे ऊँट को बाँधने की  तैयारी करने लगा | चार ऊँट तो बांध गये लेकिन पांचवे के लिए रस्सी कम पड़ गयी |
    उसने जब कोई उपाय और नहीं सूझा तो सराय में मालिक से सहायता मांगने की सोची वो सराय के अंदर जा ही रहा था कि उसे गेट के बाहर एक फ़कीर मिला जिसने व्यापारी से पुछा कि ‘तुम कुछ परेशान लग रहे हो बताओ क्या परेशानी है हो सकता है मैं तुम्हारी कुछ मदद कर पाऊं ‘ व्यापारी ने उसे अपनी समस्या बतलाई तो वो बड़े जोर जोर से हसा और फ़कीर ने कहा कि पांचवे ऊँट को भी ठीक उसी तरह बांध दो जिस तरीके से तुमने बाकि के ऊँटो को बांधा है | फकीर के ये कहने पर व्यापारी ने थोडा खीजकर और हैरान होकर कहा लेकिन ‘रस्सी है कन्हा ?” इस पर फ़कीर ने कहा उसे तुम कल्पना की रस्सी से बांधो | व्यापारी ने ऐसा ही किया और उसने ऊँट के गले में अभिनय करते हुए काल्पनिक रस्सी का फंदा डालने जैसा व्यवहार किया और उसका दूसरा सिरा पेड़ से बांध दिया | ऐसा करते ही ऊँट बड़े आराम से बैठ गया|


    व्यापारी चला गया सराय के अंदर और जाकर बड़े आराम से बेफिक्री की नींद सोया सुबह उठा और चलने की तयारी करी तो उसने बाकि के ऊँटो को खोला तो सारे ऊँट खड़े हो गये और चलने को तैयार हो गया लेकिन पांचवे ऊँट को हांकने के बाद भी वो खड़ा नहीं हुआ इस पर व्यापारी  गुस्से में आकर उसे मारने लगा लेकिन फिर भी ऊँट नहीं उठा इतने में कल वाला फ़कीर आया तो उसने कहा पागल इस बेजुबान को क्यों मार रहे हो अब | कल तुम ये बैठ नहीं रहा था तो परेशान थे और आज जब ये आराम से बैठा है तो भी तुमको परेशानी है इस पर व्यापारी ने कहा पर महाराज मुझे जाना है | फ़कीर ने कहा इसे खोलोगे तभी उठेगा न इस पर व्यापारी ने कहा मैंने कौनसा इसे बाँधा था मेने तो केवल बंधने का नाटक भर किया था तो फ़कीर कहने लगा जैसे कल तुमने इसे बाँधने का नाटक किया था वैसे ही अब खोलने केलिए भी नाटक करो | व्यापारी ने ऐसी ही किया और पलभर में ऊंट खड़ा हो गया |
    अब फ़कीर ने पते की बात बोली कि जिस तरह ये ऊंट अदृश्य रस्सियों से बंधा है उसी तरह लोग भी पुरानी रुढियों से बंधे है और आगे बढ़ना नहीं चाहते है जबकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है और इसलिए हमे रुढियों के विषय में ना सोचकर अपनी और अपने अपनों की खुशियों के बारे में सोचकर कभी कभी जिन्दगी के कुछ ऐसे नियम जो हमने नहीं बनाये है और उनके होने का औचित्य नहीं है उनके लिए थोडा soft corner रखना चाहिए जैसे कि प्रेम विवाह और विधवा विवाह जैसे मुद्दों पर कठोर नहीं होकर कोमलता से पेश आना चाहिए | जबकि अगर थोड़े उदार होते है चीजों के प्रति तो हम अपने साथ साथ दूसरो के लिए भी खुशियों के रास्ते खोलते है |

    जिसमे सालों पहले यह सपना देखा था |


    एक शहर (City ) में एक छोटा लड़का (young boy) रहा करता था अपने पिताजी के साथ और उसके पिता (father) जो है वो किसी बड़े आदमी के घोड़े के अस्तबल(Stable) में काम किया करते थे और वो देखता कि किस तरह उसके पिता पूरे दिन घोड़ों (Horses) के साथ रहते है और इतनी मेहनत करते है फिर भी उन्हें वो मान सम्मान कभी नहीं मिलता जो उस घोड़े के मालिक को है जिसके पास सेंकडों अच्छे घोड़े है और साथ ही वह समाज में खूब इज्जत और मान सम्मान भी पाता है | बचपन सपना देखने की उम्र होती है और जवानी उसे सच करने की और ऐसे ही उस लड़के ने भी सपना (Dream) देखना शुरू कर दिया कि एक दिन उसके पास भी इतनी ही दौलत होगी और उसके पास भी घोड़ों का एक बड़ा रेंच होगा जन्हा पर बहुत सारे घोड़े प्रशिक्षित किये जायेंगे और उनका मालिक भी बनेगा |
    एक दिन स्कूल में सभी बच्चो से कहा गया कि वो लोग घर जाकर अगली सुबह एक लेख लिखकर लायेंगे जिसमे ये होगा कि वो बड़े होकर क्या करना चाहते है और क्या बनना चाहते है तो इस पर उस लड़के ने रात भर जागकर एक बहुत ही बेहतरीन लेख लिखा और साथ ही अपने सपने (dream) को उसमे पूरी तरह बताते हुए उसमे उसमे 200 एकड़ के अपने सपनों वाले रेंच की फोटो भी बना दी और लड़के ने पूरे मन के साथ वो निबंध लिखा और अगले दिन शिक्षक को दे दिया |
    शिक्षक ने सभी कापियां जांचने के बाद परिणाम सुनाया तो लड़के को अजीब लगा क्योंकि उन्होंने उस लड़के द्वारा मेहनत से लिखे गये उस लेख के लिए कोई मार्क्स नहीं दिए थे और उस पर बड़े अक्षरों से फेल लिख दिया इस पर लड़के ने टीचर से वजह पूछी तो टीचर ने कहा बेहतर होता वो कोई छोटा मोटा लेख लिखता क्योंकि तुमने जो लिखा है वो पूरी तरह असम्भव है तुम लोगो के पास कुछ नहीं है इसलिए ऐसा सम्भव ही नहीं लेकिन फिर भी मैं तुम चाहो तो तुम्हे दूसरा मौका दे सकता हूँ | तुम इस निबंध को दुबारा लिखो और कोई वास्तविक लक्ष्य (Real Goal) बना लो मैं तुम्हे दोबारा नंबर देने के बारे में फिर से सोच सकता हूँ |
    लड़का उस कॉपी को लेकर घर गया और उस पर काफी सोचा लेकिन उसे पूरी रात नींद नहीं आई अगले दिन वो टीचर के पास जाकर बोला आपको जो करना हो कर सकते है क्योंकि मेरा लेख यही है मैं इसे नहीं बदलना चाहता हूँ और अगर आप मुझे फेल करना चाहते है तो आप अपने फेल को कायम रखिये और मैं अपने सपने को कायम रखता हूँ |

    बीस साल बाद वही शिक्षक कोई अंतर्राष्ट्रीय घुड़दौड़ देख रहा था तो दौड़ के पूरी हो जाने के बाद एक आदमी उनके पास आया और बड़े प्यार से उनको अपना परिचय दिया क्योंकि वह अपनी दुनिया में एक बहुत बड़ा नाम बन चूका था और यह वाही छोटा लड़का था जिसमे सालों पहले यह सपना देखा था |

    तो ठीक इसी तरह से हमे अपनी जिन्दगी (life) के बारे में बहुत कुछ बदलना होता है हमे लक्ष्य (goal) निर्धारित करने हटे है और कुछ भी विचलित नहीं होना होता लोग इस बारे में आपसे बहुत कुछ कहते है लेकिन आपको अपने सपने (dream) को पूरा करने में ध्यान देना है और पूरी उर्जा के साथ आगे बढना होता है वही आपको अपनी कामयाबी के पास (dream come true) लेकर जाएगी |

    बदलाव


    जिन्दगी में बहुत सारे अवसर ऐसे आते है जब हम बुरे हालात का सामना कर रहे होते है और सोचते है कि क्या किया जा सकता है क्योंकि इतनी जल्दी तो सब कुछ बदलना संभव नहीं है और क्या पता मेरा ये छोटा सा बदलाव कुछ क्रांति लेकर आएगा या नहीं लेकिन मैं आपको बता दूँ हर चीज़ या बदलाव की शुरुआत बहुत ही basic ढंग से होती है | कई बार तो सफलता हमसे बस थोड़े ही कदम दूर होती है कि हम हार मान लेते है जबकि अपनी क्षमताओं पर भरोसा रख कर किया जाने वाला कोई भी बदलाव छोटा नहीं होता और वो हमारी जिन्दगी में एक नीव का पत्थर भी साबित हो सकता है | चलिए एक कहानी पढ़ते है इसके द्वारा समझने में आसानी होगी कि छोटा बदलाव किस कदर महत्वपूर्ण है |
    एक लड़का सुबह सुबह दौड़ने को जाया करता था | आते जाते वो एक बूढी महिला को देखता था | वो बूढी महिला तालाब के किनारे छोटे छोटे कछुवों की पीठ को साफ़ किया करती थी | एक दिन उसने इसके पीछे का कारण जानने की सोची |
    वो लड़का महिला के पास गया और उनका अभिवादन कर बोला ” नमस्ते आंटी ! मैं आपको हमेशा इन कछुवों की पीठ को साफ़ करते हुए देखता हूँ आप ऐसा किस वजह से करते हो ?”  महिला ने उस मासूम से लड़के को देखा और  इस पर लड़के को जवाब दिया ” मैं हर रविवार यंहा आती हूँ और इन छोटे छोटे कछुवों की पीठ साफ़ करते हुए सुख शांति का अनुभव लेती हूँ |”  क्योंकि इनकी पीठ पर जो कवच होता है उस पर कचता जमा हो जाने की वजह से इनकी गर्मी पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है इसलिए ये कछुवे तैरने में मुश्किल का सामना करते है | कुछ समय बाद तक अगर ऐसा ही रहे तो ये कवच भी कमजोर हो जाते है इसलिए कवच को साफ़ करती हूँ |
    यह सुनकर लड़का बड़ा हैरान था | उसने फिर एक जाना पहचाना सा सवाल किया और बोला “बेशक आप बहुत अच्छा काम कर रहे है लेकिन फिर भी आंटी एक बात सोचिये कि इन जैसे कितने कछुवे है जो इनसे भी बुरी हालत में है जबकि आप सभी के लिए ये नहीं कर सकते तो उनका क्या क्योंकि आपके अकेले के बदलने से तो कोई बड़ा बदलाव नहीं आयेगा न |
    महिला ने बड़ा ही संक्षिप्त लेकिन असरदार जवाब दिया कि भले ही मेरे इस कर्म से दुनिया में कोई बड़ा बदलाव नहीं आयेगा लेकिन सोचो इस एक कछुवे की जिन्दगी में तो बदल्वाव आयेगा ही न | तो क्यों हम छोटे बदलाव से ही शुरुआत करें |

    अपनी 100 घंटे की जिंदगी से कई अनगिनत लोगों की जिंदगी बदल गया।



    एक मासूम अपनी 100 घंटे की जिंदगी से कई अनगिनत लोगों की जिंदगी बदल गया। दरअसल, ब्रिटेन का सबसे युवा डोनर लाखों लोगों के लिए प्रेरणा बना है। दो साल पहले जन्मा टेडी महज सौ घंटे जीवित रहा था। उसकी किडनी, हार्ट वाल्व व अन्य अंग आठ जरूरतमंद मरीजों में लगाए जा चुके हैं।


    यही नहीं, टेडी के माता-पिता की अपील के बाद मासूम से प्रेरणा लेकर एक लाख से ज्यादा लोगों ने अंग दान करने की प्रतिज्ञा ली है। बता दें कि टेडी अपने जुड़वा भाई के साथ पैदा हुआ था। डॉक्टरों ने मां जेस इवान्स को पहले ही बता दिया था कि उनकी कोख में पल रहे जुड़वा बच्चों में से एक को 'एनेंसेपाल बीमारी' है। इसमें शिशु के सिर और मस्तिष्क की अन्य हड्डियों का विकास नहीं होता है।


    डॉक्टरों ने सलाह दी कि लाइलाज बीमारी से पिडि़त शिशु को कोख में ही खत्म करें लेकिन मां ने इनकार कर दिया। जेस और उनके पति माइक चाहते थे कि उनका बेटा कुछ मिनट ही सही, पर दुनिया में जरूर आए। आमतौर पर ऐसे बच्चे जन्म से पहले या तुरंत बाद मर जाते हैं, लेकिन टेडी ने पूरे सौ घंटे मौत से संघर्ष किया। अब उसका ज़ड़वा भाई अपना दूसरा जन्मदिन मना रहा है। वहीं परिवार टेडी को याद करके दुखी है तो यह संतोष भी है कि उनके बेटे ने इतने लोगों को जिंदगी दी।

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