Friday, April 29, 2016

अंतिम इच्छा

एक चोर से हत्या हो गयी सो राजा ने उसे फांसी की सज़ा के लिए दोषी पाया और उसे फांसी सुना दी गयी और उस से उसकी अंतिम इच्छा के बारे में पुछा गया तो उसने अपनी माता से मिलने की इच्छा जाहिर की |
इस पर उसकी माता को दरबार में बुलाया गया | वह अपना मुह अपनी माता के कान के पास ले गया और अपने दांत अपनी माता के कान में गडा दिए | उसकी माता चीत्कार कर उठी तो सभा में मौजूद सभी लोगो ने उसे धिक्कारा और उस से बोला कि तुम्हारे पिता तो कबके जा चुके थे और ये तुम्हारी माता ही थी जिसने बड़े कष्टों के साथ तुम्हे पाल पोसकर बड़ा किया | इसी माँ को तूने अंतिम समय में इतना दर्द दिया है |

इस पर चोर बोला कि इसने मुझे जन्म दिया इस नाते ये मेरी माँ तो अवश्य है लेकिन माँ वो होती है जो जीवन का निर्माण करती है संस्कार देकर संतान का कल्याण सुनिश्चित करती है लेकिन इसने जब मैं बचपन में छोटा था तो बच्चो की पेन्सिल और चीज़े चुरा लिया करता था और घर आने के बाद इसे बताने पर कभी भी मुझे इस काम के लिए मना नहीं किया उल्टा खुश होती थी इसलिए मैं बेधड़क चोरियां करता और फिर चोरी को ही अपना व्यवसाय बना दिया | इसने मुझे मूक समर्थन दिया और कभी भी मुझे नहीं रोका तो मेरा होसला भी बढ़ता गया और मैं बड़ी बड़ी चोरिया भी करने लगा और अब जो मेने हत्या की थी वो भी चोरी के काम में बाधा आने के कारन मुझसे अनजाने में हो गयी |
और चूँकि मेरी माता ने कभी भी मुझे आगामी स्थितयों से मेरा परिचय नहीं करवाया इसलिए मैं किसी भी बुरे काम को अनुचित नहीं मानता था इसलिए मैंने हत्या भी करदी और यही वजह है कि मेरा जीवन समाप्त होने जा रहा है मेरे पास समय नहीं है नहीं तो मैं इस गलती के लिए इसके कान पकड़वाता | इसलिए मेने इसे ये दर्द दिया ताकि अन्य लोग भी इस से शिक्षा लें |

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