कहां खड़ा रहूं जहां भी दिखती है ज़मीन
अपने खड़े रहने माफिक करता हूं जतन
कदमों को टिकाने की
पर जानते ही खोखलापन-हकीकतें
ज़मीन कीकांपने लगते हैं कदम
टूट जाते हैं सारे स्वप्न
अपने पैरों पर खड़े होने के
सच!अब सचमुच ही होगा कठिन
खड़े रह पाना अपनी ज़मीन पर
बची ही कहां और कितनी
एक अदद आदमी के खड़े रहने के लिए
एक अददठोस ज़मीन...
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